हिन्दी साहित्य भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विरासत को अभिव्यक्त करता है। इसमें कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि विधाओं के माध्यम से मानव जीवन के विभिन्न पक्षों का चित्रण किया गया है।
B.A. III Year (4 Y.D.C.) Examination
March – April 2025
समूह- अ
विषय – हिन्दी साहित्य
काव्यांग विवेचन एवं जनपदीय भाषा साहित्य (बुन्देली / मालवी / बघेली)
(प्रथम प्रश्नपत्र)

खण्ड अ: वस्तुनिष्ठ प्रश्न (6×1=6)
1. काव्य हेतु कितने हैं? लिखिए।
उत्तर: कविता के लिए तीन कारकों पर विचार किया जाता है: वक्ता की प्रतिभा, विषय वस्तु और रस (सौंदर्य अनुभव)।
2. ओज युग से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: ओज युग वीर रस से भरपूर साहित्यिक काल है जिसमें युद्ध, वीरता और बहादुरी का चित्रण किया गया।
3. जनपदीय साहित्य के विविध रूप कौन से हैं?
उत्तर: क्षेत्रीय साहित्य के विभिन्न रूप हैं: लोकगीत, लोककथाएँ, कहावतें, लोक नाटक और मुहावरे।
4. संत सिंगाजी को निमाड़ का कबीर क्यों कहा जाता है?
उत्तर: संत सिंघाजी को निमाड़ का कबीर कहा जाता है क्योंकि उनके भजन सामाजिक सुधार और भक्ति पर आधारित हैं।
5. बालकवि बैरागी का पूरा नाम एवं जन्म स्थान बताइए?
उत्तर: बाल कवि बैरागी का पूरा नाम नंदराम दास बैरागी था, उनका जन्मस्थान मनासा, जिला नीमच (मप्र) है।
6. जनजातीय भाषा से आप क्या समझते हैं?
उत्तर: जनजातीय भाषा से तात्पर्य उन भाषाओं से है जिन्हें विभिन्न आदिवासी समुदाय अपनी पारंपरिक बोली के रूप में उपयोग करते हैं।
खण्ड ब लघुउत्तरीय प्रश्न (5×8=40)
1. काव्य की परिभाषा देते है, काव्य के उद्देश्य बताइए।
उत्तर: काव्य की परिभाषा: काव्य एक ऐसी साहित्यिक रचना है जिसमें भावनाओं, विचारों और कल्पनाओं को सुंदर और लयबद्ध भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें सौंदर्य और रस का अनुभव होता है, जिससे पाठक या श्रोता का मन प्रभावित होता है। काव्य का मुख्य उद्देश्य मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को व्यक्त करना और आनंद प्रदान करना होता है।
काव्य के उद्देश्य:
1. मनोरंजन: काव्य का एक मुख्य उद्देश्य पाठक को आनंद और मनोरंजन प्रदान करना है। यह सुंदर भाषा और चित्रात्मकता से मन को प्रसन्न करता है।
2. शिक्षा देना: काव्य समाज की बुराइयों और अच्छाइयों को उजागर कर, व्यक्ति को नैतिक शिक्षा देता है। यह जीवन के मूल्य और सत्य को प्रदर्शित करता है।
3. भावनाओं की अभिव्यक्ति: काव्य व्यक्ति की गहरी भावनाओं और संवेदनाओं को व्यक्त करने का एक माध्यम है। यह दिल की अनकही बातों को शब्दों में ढालता है।
4. सौंदर्य का अनुभव: काव्य के माध्यम से व्यक्ति सौंदर्य का अनुभव करता है, चाहे वह प्राकृतिक सौंदर्य हो या आंतरिक। यह उसे जीवन के सुंदर पक्ष से परिचित कराता है।
5. समाज सुधार: काव्य समाज के विकृत पहलुओं पर प्रकाश डालता है और सुधार की दिशा में प्रेरित करता है। यह जागरूकता फैलाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
6. आध्यात्मिक उन्नति: काव्य व्यक्ति को आत्मा की गहराईयों में ले जाकर उसे आत्मसाक्षात्कार और ईश्वर की ओर प्रेरित करता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है।
अथवा
काव्य लक्षण से आप क्या समझते हैं? काव्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
3. काव्य गुण कसे कहते हैं? काव्य गुणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अथवा
श्रृंगार रस किसे कहते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: श्रृंगार रस वह रस है जो प्रेम, आकर्षण, सौंदर्य और रोमांटिक भावनाओं से संबंधित होता है। इसे प्रेम रस भी कहा जाता है, जो प्रेम के विभिन्न रूपों, सुंदरता और प्रेम संबंधी भावनाओं को व्यक्त करता है। यह रस व्यक्ति के दिल में आकर्षण, कोमलता और प्रेम की भावना उत्पन्न करता है। श्रृंगार रस में सुंदरता, विरह, मिलन और आकर्षण की छवियाँ होती हैं। यह काव्य, गीतों और साहित्य में बहुतायत से प्रयोग होता है।
उदाहरण 1
“कान्हा की मधुर मुस्कान, राधा की चितवन, दोनों मिलकर देते हैं प्रेम का संदेश।”
यह उदाहरण कृष्ण और राधा के बीच के प्रेम को व्यक्त करता है। कान्हा की मुस्कान और राधा की चितवन (नज़रे) दोनों के बीच आकर्षण और प्रेम की गहरी भावना को प्रकट करती हैं। यहाँ पर श्रृंगार रस के माध्यम से दोनों के बीच के सौंदर्य और प्रेम का आदान-प्रदान दिखाया गया है। कृष्ण की मुस्कान राधा के लिए आकर्षण का कारण बनती है और राधा की चितवन कृष्ण की ओर आकर्षित होती है। दोनों मिलकर प्रेम का संदेश देते हैं, जिससे प्रेम और सौंदर्य की विशेषता व्यक्त होती है।
उदाहरण 2
“जितनी सुंदर तेरी आँखें हैं, उतनी ही प्यारी तेरी बातें, तेरे बिना हर दिन जैसे रुक जाता है संसार।”
यह उदाहरण प्रेम और आकर्षण को व्यक्त करता है, जिसमें व्यक्ति अपने प्रिय के शारीरिक और मानसिक आकर्षण को सराहता है। “तेरी आँखें” और “तेरी बातें” की सुंदरता का बखान करना, और “तेरे बिना हर दिन जैसे रुक जाता है” जैसी भावनाएँ श्रृंगार रस की गहराई को व्यक्त करती हैं। इसमें प्रिय के प्रति गहरी प्रेम भावना, आकर्षण और निर्भरता का चित्रण है। यह प्रेम और आकर्षण के आधार पर व्यक्त किए गए भावनाओं का प्रतीक है।
3. जनपदीय भाषा बुन्देली अथवा मालवी अथवा बघेली के सीमा क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: जनपदीय भाषा – बुन्देली
भौगोलिक क्षेत्र: बुंदेली भाषा मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बोली जाती है। बुंदेलखंड का क्षेत्र मुख्य रूप से 13 जिलों में फैला हुआ है, जिसमें झाँसी, ललितपुर, टीकमगढ़, सागर, दतिया, और उरई जैसे जिले शामिल हैं।
भाषाई विशेषताएँ: बुंदेली में हिंदी के कई शब्द होते हैं, लेकिन यह एक अलग पहचान रखती है। इसमें खासतौर पर ओंकार (ओ), आंकार (आं), और आ आदि का उच्चारण प्रमुख होता है। शब्दों में उच्चारण का अंतर इसे हिंदी से अलग करता है। उदाहरण के लिए, बुंदेली में ‘का’ को ‘क’ और ‘ने’ को ‘न’ रूप में उच्चारित किया जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: बुंदेली भाषा में विशेषकर लोकगीत, कथाएँ, और वीरगाथाएँ प्रचलित हैं। बुंदेली के लोक साहित्य में रानी दुर्गावती, वीर शिवाजी, और राजा छत्रसाल जैसे ऐतिहासिक पात्रों के बारे में कथाएँ मिलती हैं। यह भाषा स्थानीय समाज और संस्कृति की पहचान है।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण: आजकल बुंदेली भाषा धीरे-धीरे लुप्त हो रही है, क्योंकि क्षेत्रीय भाषाओं और हिंदी के बढ़ते प्रभाव के कारण युवा पीढ़ी इसका कम प्रयोग करती है। हालांकि, बुंदेली के संरक्षण के लिए कुछ कदम उठाए जा रहे हैं, जैसे लोक संगीत, नाटक और साहित्य के रूप में इसका प्रचार।
उत्तर: जनपदीय भाषा – मालवी
भौगोलिक क्षेत्र: मालवी भाषा मध्य प्रदेश के पश्चिमी और दक्षिणी हिस्से में बोली जाती है। खासतौर पर यह इंदौर, उज्जैन, देवास, शाजापुर, और रतलाम जिलों में प्रचलित है। इसके अलावा राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में भी मालवी बोली जाती है।
भाषाई विशेषताएँ: मालवी में हिंदी के बहुत से शब्द होते हैं, लेकिन इसमें खास उच्चारण और स्वर होते हैं, जैसे ‘क’ और ‘ग’ के बीच का अंतर, ‘अ’ और ‘आ’ का मिश्रण। मालवी में संज्ञाओं और क्रियाओं का उच्चारण भी खास होता है। उदाहरण के लिए, ‘मुझे’ को ‘मुझ’ और ‘तुम’ को ‘तू’ के रूप में बोला जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: मालवी भाषा के गीत, लोककथाएँ और रामायण की लोककाव्य की परंपरा बहुत प्रसिद्ध हैं। मालवी में लोक साहित्य की समृद्ध परंपरा रही है, जो ग्रामीण जीवन की सरलता और वास्तविकता को दर्शाती है। यहाँ के त्यौहार, रीति-रिवाज, और लोक नृत्य भी मालवी की पहचान हैं।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण: मालवी भाषा आज भी गाँवों में बोली जाती है, लेकिन शहरीकरण और हिंदी के प्रभाव के कारण इसकी पहचान कम हो रही है। हालांकि, मालवी के संरक्षण के लिए कुछ साहित्यकार और संगठनों द्वारा इसे बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे मालवी साहित्य महोत्सव का आयोजन।
उत्तर: जनपदीय भाषा – बघेली
भौगोलिक क्षेत्र: बघेली भाषा मध्य प्रदेश के जबलपुर, सागर, कटंगी, छिंदवाड़ा, और अन्य आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। यह मुख्य रूप से बघेलखंड क्षेत्र में प्रचलित है, जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला है।
भाषाई विशेषताएँ: बघेली में हिंदी की कई विशेषताएँ पाई जाती हैं, लेकिन इसमें कुछ विशेष ध्वनियाँ और उच्चारण होते हैं। बघेली में ‘आ’ और ‘ओ’ के विशेष प्रयोग होते हैं, जैसे ‘ठक’ के स्थान पर ‘ठकठ’ और ‘सुनना’ को ‘सुनन’ के रूप में बोला जाता है।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव: बघेली लोकगीतों, लोककथाओं और विशेषकर बघेली रीति-रिवाजों में गहरी जड़ें रखती है। यहाँ के लोक नृत्य, गीत, और ऐतिहासिक काव्य बघेली संस्कृति को प्रदर्शित करते हैं। बघेलखंड के ऐतिहासिक युद्धों और वीरता की कथाएँ भी बघेली में प्रचलित हैं।
वर्तमान स्थिति और संरक्षण: बघेली भाषा का संरक्षण अब चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि शहरीकरण और हिंदी के प्रचार-प्रसार से युवा पीढ़ी बघेली का कम प्रयोग कर रही है। फिर भी कुछ संगठनों और साहित्यकारों द्वारा बघेली भाषा के साहित्य और लोक संगीत का संरक्षण किया जा रहा है।
अथवा
निस्र में से किसी एक कवि का परिचय दीजिए:
(अ) जगनिक। (ब) संत पीपा। (स) बैजनाथ पाण्डे बैजू।
उत्तर: (अ) कवि जगनिक – परिचय
परिचय: जगनिक एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और रचनाकार थे, जो मध्यकाल के भक्ति साहित्य से जुड़े हुए थे। इनका काल 15वीं-16वीं शताब्दी का था। वे विशेष रूप से निर्गुण भक्ति के कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं। उनका जन्म और जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनकी रचनाएँ भक्ति आंदोलन के प्रभाव का स्पष्ट उदाहरण हैं।
रचनाएं:
भाव पक्ष: जगनिक की रचनाओं में भक्ति, ज्ञान और प्रेम का अद्वितीय मेल है। उन्होंने अपने काव्य में भगवान के निराकार रूप को प्रमुखता दी और सच्ची भक्ति के महत्व को बताया। उनके काव्य में मानवता, विनम्रता, और आत्मा की शुद्धता पर जोर दिया गया है।
कला पक्ष: उनकी रचनाओं में सरलता और प्रवाह की विशेषता है। जगनिक ने काव्य को जनमानस तक पहुँचाने के लिए सरल भाषा का प्रयोग किया। उनका काव्य शास्त्रीय न होकर लोकभाषा में था, जिससे इसे आम लोग आसानी से समझ सके।
साहित्य में स्थान: जगनिक का स्थान हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण भक्ति कवि के रूप में है। उनका साहित्य भक्ति और उपासना के क्षेत्र में आदर्श है, और वे हिंदी काव्य की निर्गुण शाखा के प्रमुख कवियों में माने जाते हैं।
उत्तर: (ब) कवि: संत पीपा – परिचय
परिचय: संत पीपा 15वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध संत कवि और भक्ति के महान प्रचारक थे। वे गुजरात के छोटे से गाँव से थे और उनका काव्य मुख्यतः सगुण भक्ति पर आधारित था। संत पीपा के जीवन की प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्होंने अपने शाही जीवन को त्याग कर साधु जीवन अपनाया और भगवान की भक्ति में लीन हो गए।
रचनाएं:
भाव पक्ष: संत पीपा की रचनाओं में भगवान के प्रति अपार प्रेम, आत्मसमर्पण और भक्ति का भाव प्रमुख है। वे सद्गुणों की महिमा और पापों से मुक्ति के लिए शरणागति के पक्षधर थे। उनका काव्य जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पहचानने के लिए प्रेरित करता है।
कला पक्ष: संत पीपा के काव्य में आंतरिक भावनाओं की गहराई और शुद्धता स्पष्ट रूप से देखी जाती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में सहज और सरल भाषा का प्रयोग किया, जिससे उनका संदेश आम लोगों तक आसानी से पहुँच सका।
साहित्य में स्थान: संत पीपा का स्थान हिंदी साहित्य में एक महान संत और भक्ति कवि के रूप में स्थापित है। वे विशेष रूप से सगुण भक्ति के कवि माने जाते हैं, और उनकी रचनाएँ भक्तिवाद के साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
उत्तर: (स) कवि: बैजनाथ पाण्डे (बैजू) – परिचय
परिचय: बैजनाथ पाण्डे (बैजू) एक प्रमुख हिंदी कवि थे, जिनकी रचनाएँ भक्ति साहित्य के अंतर्गत आती हैं। उनका समय 16वीं शताब्दी के आसपास था। वे विशेष रूप से अपनी काव्य रचनाओं में भगवान के प्रति भक्ति और प्रेम का अद्वितीय चित्रण करते थे। बैजू का जन्म उत्तर भारत में हुआ था, और वे एक महान संत कवि के रूप में प्रसिद्ध हैं।
रचनाएं:
भाव पक्ष: बैजू के काव्य में भक्ति, प्रेम और आत्मसमर्पण का भाव प्रमुख है। वे भगवान की उपासना के साथ-साथ जीवन के मूल्य और अध्यात्मिक उन्नति पर जोर देते हैं। उनके काव्य में भगवान के प्रति एक गहरी आस्था और प्रेम व्यक्त होता है।
कला पक्ष: बैजू के काव्य की भाषा सरल और प्रभावशाली है। उन्होंने कविता में मंत्रमुग्ध करने वाली लय और राग का प्रयोग किया है। उनका काव्य सामान्य लोगों के दिलों को छूता है और उनमें भक्ति की भावना उत्पन्न करता है।
साहित्य में स्थान: बैजू का स्थान हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण संत कवि के रूप में है। उनके काव्य की गहराई और भक्तिपंथ के प्रति उनकी निष्ठा उन्हें भक्ति साहित्य के आदर्श कवियों में शामिल करती है। वे विशेष रूप से भगवान शिव और कृष्ण के प्रति अपनी असीम भक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।
4. निम्नलिखित पद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए:
- स्वारथ के सब मितरे, पग पग विपद बढ़ाये।
- पीपा गुरू उपदेश बिनु, सांच न जान्यो जाये ।।
- सतगुरू आय देही, हाथों लिया मिसाल ।
- पीपा अलख लखन चहैं, हिवडे दिबड़ा बाल।।
उत्तर:
अथवा
- हमारे रमटैरा की तान, समझ लौ तीरथ की प्रस्थान,
- जात है बूढे बालै ज्वान, जहाँ पै लाल ध्वजा फहराएँ।
- नग-नग देह फरक वै भइया जौ दिवाली गायें।
- दीवारी आई है। उमंगे लाई है।
उत्तर:
अथवा
सैफुद्दीन सिद्धिकी सैफू की काव्यगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर: सैफुद्दीन सिद्धिकी “सैफू” की काव्यगत विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. प्रकृति चित्रण: सैफू के काव्य में प्रकृति का सुन्दर चित्रण मिलता है, जो उनकी काव्य रचनाओं को प्राकृतिक सौंदर्य से जोड़ता है।
2. भावपूर्ण अभिव्यक्ति: उनके काव्य में भावनाओं की गहरी अभिव्यक्ति होती है, जिससे पाठक को आसानी से जुड़ाव महसूस होता है।
3. मधुर भाषा शैली: सैफू ने अपनी कविताओं में सरल और मधुर भाषा का प्रयोग किया है, जो आम जनता के बीच लोकप्रिय हो।
4. भक्ति और प्रेम: उनके काव्य में भक्ति और प्रेम का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसमें मानवता और आध्यात्मिकता की भावना व्यक्त होती है।
5. संगीतात्मकता: सैफू के काव्य में संगीतात्मक लय और राग का प्रयोग किया गया है, जो उनके लेखन को आकर्षक बनाता है।
6. लोकप्रियता और सरलता: उनकी रचनाएँ लोक जीवन से जुड़ी होती हैं और सरल होती हैं, जिससे लोग आसानी से उन्हें समझ सकते हैं।
7. विरक्ति और वैराग्य: सैफू की कविताओं में संसार से विरक्ति और आत्मा की शुद्धि के बारे में गहरी बातें की गई हैं।
8. दर्शन और आत्ममंथन: उनके काव्य में आत्ममंथन और दर्शन के तत्वों का समावेश है, जो जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर प्रवृत्त करता है।
5. जनजाति संस्कृति क्या है?
उत्तर: जनजाति संस्कृति वह संस्कृति है जो भारतीय उपमहाद्वीप में निवास करने वाली जनजातियों (आदिवासी समुदायों) द्वारा विकसित और संरक्षित की जाती है। यह संस्कृति मुख्य रूप से इन समुदायों के पारंपरिक जीवन, मान्यताओं, रीति-रिवाजों, विश्वासों, कला, शिल्प, संगीत, नृत्य, भाषा, और अन्य सामाजिक प्रथाओं पर आधारित होती है। जनजाति संस्कृति को समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं को ध्यान में रखा जा सकता है:
1. आध्यात्मिक और धार्मिक विश्वास: जनजातियों की धार्मिक मान्यताएँ प्रकृति के साथ गहरे जुड़े हुए हैं। वे देवी-देवताओं, प्राकृतिक शक्तियों जैसे सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष, जल, पहाड़ आदि की पूजा करते हैं। उनका विश्वास है कि यह सारी शक्तियाँ उनकी जीवनशैली से जुड़ी हुई हैं।
2. सामाजिक संरचना: जनजातीय समाज में सामान्यत: छोटे और स्वायत्त समूह होते हैं, जिनमें कबीला, परिवार, और बिरादरी की प्रधानता होती है। प्रत्येक समूह का अपना शासन व्यवस्था, परंपराएँ, और रीति-रिवाज होते हैं।
3. आर्थिक गतिविधियाँ: इन समुदायों की आजीविका मुख्य रूप से कृषि, शिकार, जंगल से संसाधन एकत्र करना, कुम्हारी, बुनाई और अन्य हस्तशिल्प से जुड़ी होती है। वे प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग में संतुलन बनाए रखते हुए रहते हैं।
4. संगीत और नृत्य: जनजाति संस्कृति में संगीत और नृत्य की महत्वपूर्ण भूमिका है। विभिन्न जनजातियाँ अपनी परंपराओं और उत्सवों के दौरान खास प्रकार के लोक संगीत और नृत्य करती हैं, जो उनके जीवन की खुशी और संघर्षों का प्रतीक होते हैं।
5. कला और शिल्प: जनजातियों की कला मुख्य रूप से कच्चे प्राकृतिक तत्वों से बनाई जाती है, जैसे लकड़ी, बांस, मिट्टी, और पत्तियाँ। इनके द्वारा बनाए गए पारंपरिक शिल्प वस्त्र, आभूषण, और अन्य घरेलू उपकरण आदि प्रसिद्ध हैं।
6. भाषा और साहित्य: जनजातियों की अपनी विशिष्ट भाषाएँ और साहित्यिक परंपराएँ होती हैं। ये भाषाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी प्रवाहित होती हैं, और इनकी कविता, कहानियाँ और गीत समाज के जीवन को दर्शाते हैं। जनजाति संस्कृति सरल, स्वाभाविक और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की संस्कृति है, जो अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों, विश्वासों और जीवनशैली के माध्यम से समय के साथ विकसित हुई है। यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
अथवा
भारत में जनजातियों की वर्तमान स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर: भारत में जनजातियों की वर्तमान स्थिति को निम्नलिखित बिंदुओं में संक्षेपित किया जा सकता है:
1. जनसंख्या का आकार: भारत में 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ देश की कुल जनसंख्या का लगभग 8.6% हिस्सा हैं, जो विविधता में एकता का प्रतीक है।
2. भौगोलिक वितरण: ये जनजातियाँ देश के विभिन्न भागों में फैली हुई हैं, खासकर मध्य भारत, उत्तर-पूर्वी क्षेत्र और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में।
3. सामाजिक-आर्थिक चुनौतियाँ: कई आदिवासी समुदाय गरीबी, अशिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिसके लिए उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार की आवश्यकता है।
4. शैक्षणिक स्तर: जनजातीय क्षेत्रों में शिक्षा तक सीमित पहुंच के कारण साक्षरता दर अन्य समुदायों की तुलना में कम है, जिसका असर रोजगार के अवसरों पर भी पड़ता है।
5. स्वास्थ्य सेवाएं: दूरदराज के क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण जनजातीय समुदायों में कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं अधिक पाई जाती हैं।
6. संस्कृति और भाषा संरक्षण: जनजातीय समुदाय अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और भाषाओं को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, हालांकि आधुनिकता के प्रभाव से कुछ परंपराएं खतरे में हैं।
7. राजनीतिक प्रतिनिधित्व: संविधान द्वारा अनुसूचित जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, लेकिन राजनीतिक प्रतिनिधित्व और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी अभी भी सीमित है।
8. विकास योजनाएं: सरकार विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन इन योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर निगरानी और सुधार की आवश्यकता है।
खण्ड स : दीर्घउत्तरीय (2×12=25)
प्रश्न 1. काव्य प्रयोजन से आप क्या समझते हैं? काव्य प्रयोजन को विस्तार से समझाइए ।
2. अलंकार का अर्थ, परिभाषा एवं प्रकारों को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर: अलंकार का अर्थ: ‘अलंकार’ का शाब्दिक अर्थ होता है — श्रृंगार या सजावट। साहित्य में अलंकार का प्रयोग भाषा को सुंदर, प्रभावशाली और आकर्षक बनाने के लिए किया जाता है।
अलंकार की परिभाषा: जब किसी कविता, वाक्य या पद्य की शोभा, माधुर्य और सौंदर्य को बढ़ाने के लिए विशेष शब्दों या अर्थों का प्रयोग किया जाता है, तो उसे अलंकार कहा जाता है। या “वाक्य या पद्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व को अलंकार कहते हैं।”
अलंकार के मुख्य दो प्रकार होते हैं:
1. शब्दालंकार – जब काव्य में शब्दों की रचना, ध्वनि, छंद, लय, तुकांत या वर्णों की पुनरावृत्ति के माध्यम से सुंदरता उत्पन्न होती है, तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
2. अर्थालंकार – जब काव्य में प्रयोग किए गए शब्दों के अर्थ, भाव, कल्पना या तुलना के माध्यम से सुंदरता उत्पन्न होती है, तो उसे अर्थालंकार कहते हैं।
1. शब्दालंकार (Shabd Alankar) के प्रकार:
(a) अनुप्रास अलंकार: जब एक ही वर्ण या अक्षर की पुनरावृत्ति हो, वहां अनुप्रास अलंकार आता हैं।
उदाहरण: “चंदू के चाचा ने, चंदू की चाची को, चांदनी चौक में, चांदी के चमचे से, चटनी चटाई”
यहाँ “च” वर्ण की पुनरावृत्ति है।
(b) यमक अलंकार: जब एक ही शब्द एक से अधिक बार आए, लेकिन उसका अर्थ अलग-अलग हो, वहां यमक अलंकार आता हैं।
उदाहरण: “भूषण भूषण भूषित करे।”
यहां पहला “भूषण” = नाम है और दूसरा “भूषण” = वस्त्राभूषण है।
(c) श्लेष अलंकार: जब एक ही शब्द में दो या अधिक अर्थ छिपे हों, वहां श्लेष अलंकार दर्शाता हैं।
उदाहरण: “नीर भरी दुख की बदली।”
“नीर” का अर्थ जल भी है और अश्रु भी।
2. अर्थालंकार (Arth Alankar) के प्रकार:
(a) रूपक अलंकार: जब किसी वस्तु को किसी अन्य वस्तु के रूप में पूरी तरह प्रस्तुत किया जाए, रूपक अलंकार होता हैं।
उदाहरण: “चाँद सा मुखड़ा।
यहाँ मुख को चाँद के रूप में दिखाया गया है।
(b) उपमा अलंकार: जब दो वस्तुओं में समानता दर्शाई जाए और उपमेय-उपमान शब्दों का प्रयोग हो, उपमा अलंकार दर्शाता हैं।
उदाहरण: “वह शेर जैसा बहादुर है।”
यहाँ “शेर” उपमान और “वह” उपमेय है।
(c) उत्प्रेक्षा अलंकार: जब किसी वस्तु की किसी अन्य वस्तु से कल्पना या संभावना के रूप में तुलना हो, उत्प्रेक्षा अलंकार आता है।
उदाहरण: “उसका चेहरा मानो चाँद हो।”
यहाँ “मानो” शब्द कल्पना दर्शाता है।
(d) दृष्टांत अलंकार: जब किसी कथन को समझाने के लिए कोई उदाहरण प्रस्तुत किया जाए, वहां दृष्टांत अलंकार होता है।
उदाहरण: “जैसे लोहे को जंग खा जाती है, वैसे ही आलसी को आलस्य नष्ट कर देता है।”
3. जनपदीय साहित्य का आशय स्पष्ट करते हुए इसकी विशेषताएँ लिखिए।
4. निमाड़ी बोली का परिचय देते हुए इसकी सीमाएँ एवं क्षेत्र पर प्रकाश डालिए।
5. मानव सभ्यता के विकास में जनजातीय भाषाओं के योगदान पर निबन्ध लिखिए।
उत्तर: निबंध: मानव सभ्यता के विकास में जनजातीय भाषाओं का योगदान
प्रस्तावना: मानव सभ्यता का विकास किसी एक जाति, संस्कृति या भाषा का परिणाम नहीं है, बल्कि यह अनेक विविधताओं से मिलकर बना हुआ एक समृद्ध इतिहास है। इसमें जनजातीय समाजों और उनकी भाषाओं का भी अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जनजातीय भाषाएँ न केवल प्राचीन ज्ञान, अनुभव और परंपराओं की संवाहक हैं, बल्कि मानव समाज की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि की प्रतीक भी हैं।
जनजातीय भाषाओं का स्वरूप: भारत और विश्व के अनेक भागों में जनजातियाँ निवास करती हैं। इनकी अपनी-अपनी भाषाएँ होती हैं, जो मौखिक परंपरा के रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचती हैं। ये भाषाएँ प्रकृति के निकट होती हैं और इनमें स्थानीय अनुभवों, परंपराओं, लोकगीतों, लोककथाओं तथा धार्मिक विश्वासों का खजाना छिपा होता है।
सभ्यता के विकास में योगदान: 1. प्राकृतिक ज्ञान का भंडार: जनजातीय भाषाओं में पारंपरिक औषधियों, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के बारे में बहुमूल्य ज्ञान संचित है। यह ज्ञान आज आधुनिक चिकित्सा और पर्यावरणीय अनुसंधान में उपयोगी हो रहा है।
2. लोक साहित्य और संस्कृति: जनजातीय भाषाएँ अद्भुत लोककथाओं, गीतों और नृत्य शैलियों की वाहक हैं। इनका साहित्य मानव मूल्यों, संघर्षों और साहस की कहानियों से भरपूर होता है।
3. भाषाई विविधता का संवर्धन: ये भाषाएँ वैश्विक भाषाई विविधता को बनाए रखने में सहायक हैं और अनेक प्रमुख भाषाओं के विकास में आधार बनी हैं।
4. सामाजिक संरचना और लोकतांत्रिक मूल्य: जनजातीय भाषाओं में समुदाय आधारित जीवनशैली, समानता, साझेदारी और सह-अस्तित्व की भावना प्रकट होती है, जो आज के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत करने में सहायक हो सकती है।
वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ: आज के वैश्वीकरण और शहरीकरण के दौर में जनजातीय भाषाएँ लुप्त होने की कगार पर हैं। इनके संरक्षण की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक हो गई है। यदि इन भाषाओं को संरक्षित नहीं किया गया, तो हम केवल भाषाएँ ही नहीं, बल्कि एक संपूर्ण ज्ञान प्रणाली और संस्कृति को खो देंगे।
उपसंहार: जनजातीय भाषाएँ मानव सभ्यता की विविधता और सांस्कृतिक समृद्धि की अमूल्य धरोहर हैं। इनका संरक्षण केवल भाषाई जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता के इतिहास और भविष्य की रक्षा है। अतः जनजातीय भाषाओं को सहेजना और उनका प्रचार-प्रसार करना मानवता के हित में अत्यंत आवश्यक है।
➡️ हिन्दी और संस्कृति भाषा | BA/BSW 3rd Year Paper | DAVV | 2025
➡️ Foundation Course | BA/BSW 3rd Year Paper | DAVV | 2025
➡️ सामान्य ज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न उतर | पार्ट 3 | 201-300
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